किसी ने तंज कसा,
किसी ने पीठ थपथपाई,
यहाँ हर किसी ने अपने तरीके से प्यार दिखाई।
कभी रास्ते भटके,
कभी ठोकरें खाई,
गिरे, उठे फिर चलते चलते हमने मंज़िलें पाई।
सुकून की तलाश मे निकले थे,
तब भी न था और अब भी न है।
मंज़िल पे आके देखा,
चले थे तब तुम तो थे,
पर अब तुम भी न हो।
नये दोस्त, नये हमसफ़र मिले इस सफ़र मे,
कोई तुम सा न है,
कोई तुम सा न था।
आज सब कुछ है,
कल तेरे सिवाय कुछ भी न था,
मगर सच तो ये है की कल कोई तनहा तो न था।
कभी रास्ते भटके,
कभी ठोकरें खाई
गिरे, उठे फिर चलते चलते हमने मंज़िलें पाई
Bhut khoob
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शुक्रिया। ऐसी ही कुछ रचनाओं के लिए , मेरी किताब “कुछ वो पल” को पढ़े। वो Amazon और Flipkart पे उपलब्ध है।
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बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी।
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जी जरुर अभी तो वर्डप्रेस पर ही बेराइटी मिल जाती है पढने और पढाने को। समय मिलने पर अवश्य पढूंगी। धन्यवाद।
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its beautiful…
plz do follow my site,if u like it
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Bahut khub likha hai…..
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👌👌👌
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